छत्तीसगढ़ : मुझे दिनांक 22/03/2020 के दुसरे दिन गाँव के एक शिक्षित बुजुर्ग ने चर्चा के दौरान कहा था, तब कोरोना एक दो देशों तक ही सीमित था “Corona ( कोरोना ) प्रकृति का प्रकोप है “ | लोगों ने प्रकृति के साथ अन्याय किया है | कुदरत का नियम है जब भी उसके सृष्टि को किसी भी प्रकार से खतरे का अहसास होता है अपने तरीके से बदलाव करती है | बुजुर्ग के शब्दों में कहूँ तो “ संहार करती है “ जिसमें पापात्मा और पुण्यात्मा दोनों का संहार होता है | प्रकृति ने अब तक कितने ही प्रजाति को समूल नष्ट किया और कितने जीवों का नया सृजन किया है |
हालाँकि बुजुर्ग के ख्याल धार्मिक भावना से ओतप्रोत लगे फिर भी मैंने उनके विचारों का सम्मान करते हुए उनके तर्कों, विश्लेषण को सुना और भूल भी गया | मगर जब भारत के प्रधानमंत्री ने शाम को 21 दिनों की लॉकडाउन की घोषणा कर दी, फिर लॉकडाउन की तारीख बढ़ने लगी | प्रथम चरण दूसरे तीसरे और चौथे , तब लगा कि Corona ( कोरोना ) महामारी के रूप में कहीं प्रकृति के संकेत तो नहीं है |
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लॉकडाउन के दौरान प्रकृति का स्वरूप में बदलाव दिखा
लॉकडाउन प्रथम फ़ेज के दौरान जब देश में सारी गतिविधियों पर विराम लग गया था | लोग घरों में कैद होने के लिए मजबूर हो गए थे | फैक्ट्री,मशीन,भारी वाहनों का आवागमन पर अंकुश लग चुका था | पूरा देश शांत, सड़कें वीरान,धरती से आकाश तक , सब कुछ निस्तब्ध ,शून्य हो गया था | मगर प्रकृति के अन्दर की हलचलें तेज हो गयी थी | रोज रोज मनुष्य के सृष्टि के दोहन, शोषण से प्रकृति को सुकून मिला था और नतीजा दिखाई दे रहा था नदियों के स्वच्छ निर्मल प्रवाह स्पष्ट गोचर हो रहे थे |
जंगल से निकलकर कुछ दुर्लभ जीव सड़कों में विचरण करते हुए दिखाई दिए | पक्षियों के झुण्ड जो कभी विलुप्त जान पड़ते थे एकाएक सामने आकर कलरव करने लगे थे | ये सब क्या था क्या मानव के डर से समूचा प्रकृति आहत है | क्या हम इनके स्वतंत्र जीवन में दखल दे रहे है |अगर अखबारों की ख़बरों रिपोर्ट को माने तो कोरोना काल लॉकडाउन मनुष्यों के लिए हाहाकार दिल दहलाने जैसा अनुभव था, दूसरी तरफ जंगल जीव और समुद्री तटों और पृथ्वी के लिए शांतिपूर्ण काल माना जा सकता है |
संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख की चेतावनी
Corona Virus के घातक हमला से न केवल मानव बल्कि बेजुबान जानवर भी शिकार हो रहे हैं | इस वायरस के बदलते स्वरूप और तरीके से डॉक्टर की थ्योरी भी काम नहीं आ रही है | कई मरीजों को कोई सर्दी के लक्षण नहीं थे, बुखार महसूस नहीं हो रहा था और गले में दर्द या बलगम भी नहीं निकल रहा था फिर भी कोरोना पोजिटिव पाए गए | कोरोना प्रत्येक मरीज पर अलग प्रभाव डाल रहे हैं जिससे डॉक्टरों की बताई गयी थ्योरी और सुझाव भी काम नहीं आ रहे हैं | आम जन वायरस के विभिन्न स्वरूपों से चिंतित है और किसी के समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इस बीमारी को नियंत्रण कैसे करें | दिसंबर 2019 में चीन में उदय होने वाला यह वायरस देखते ही देखते पूरी दुनिया के 216 देशों को अपने चपेट में ले लिया तथा 371166 ( 01 जून 2020 WHO के अपडेट अनुसार ) लोगों की जान ले ली | पहले कहा जा रहा था की यह एक महामारी बीमारी है कुछ समयोपरांत चला जायेगा | कुछ विशेषज्ञों का अनुमान था कि भारत में ग्रीष्म ऋतु के आगमन के बाद वायरस के प्रभाव कम हो जायेंगे | लेकिन ऐसा होते नहीं दिख रहा है अब World Health Organization कह रहा है कि यह बीमारी एड्स कैंसर जैसी ही खतरनाक जानलेवा बीमारी है, और अन्य सामान्य बीमारी की तरह वातावरण में रहेगा | अब मानव को इस खतरनाक जानलेवा बीमारी के साथ जीना पड़ेगा |
United Nations के पर्यावरण प्रमुख इंगर एंडरसन कहती है “ कि प्रकृति हमें कोरोनोवायरस महामारी और चल रहे जलवायु संकट के साथ एक संदेश भेज रही है। मानवता प्राकृतिक दुनिया पर बहुत अधिक दबाव डाल रही है और चेतावनी दी है कि इसके खतरनाक परिणाम होंगे, यह कहते हुए कि पृथ्वी की देखभाल नहीं करने का मतलब है खुद की देखभाल नहीं करना।
प्रकृति में बहुत सारी गतिविधियाँ गुप्त रूप से चल रही है
आप सबको पता है कि सृष्टि का इको सिस्टम को बिगाड़ने में मानव ही जिम्मेदार है | कोरोना वायरस प्रकृति द्वारा भेजा गया एक छोटा सा जीवाणु है | जिसके प्रकोप से पूरी दुनिया में दहशत छा गयी है | सोचिये ऐसे अनगिनत जीवाणु प्रकृति के कोख में पल रहे हैं | क्या मालूम कोई अन्य वायरस जो कोरोना से भी ज्यादा घातक फैलने वाला वायरस मानव जीवन में प्रवेश कर जाए तो पूरी पृथ्वी से इंसानी आबादी खत्म हो जाएगी | प्रकृति ने मानव को अन्य जीवों के साथ रहने के लिए पृथ्वी पर पैदा किया है | सब की अपनी मर्यादाएं हैं और हमने विकास के नाम पर सबसे ज्यादा प्रकृति को ही नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है |
प्रकृति की संकेत को समझना होगा
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो रहा है, यूरोपियन स्पेस एजेंसी की वेबसाइट के अनुसार अब तक 200 सालों में 09% की कमी आई है | यूरोपियन स्पेस एजेंसी ( swarm space agency ESA mission ) जो पृथ्वी के चुम्बकीय फील्ड का बारीकी से निरिक्षण करती है | इ एस ए के अनुसार पृथ्वी के अमेरिका और साउथ अफ्रीका के बीच (जो साउथ अटलांटिक एनोमली के नाम से जाना जाता है ) मेगनेटिक फील्ड की तीव्रता में कमी आई है | जिसके वजह से सेटेलाइट के कक्षों और सेटेलाइट के सिगनल भी प्रभावित हो रहे है |
अब सवाल यह है कि पृथ्वी के चुम्बकीय शक्ति में क्यों कमी आ रही है
इसके लिए भी मानव ही जिम्मेदार हैं | विज्ञान के छात्रों को पता है कि पृथ्वी के गर्भ के अन्तः केंद्र में एक जीवित चुम्बक सक्रिय है | इस चुम्बक का आउटर कोर तरल लोहे और निकल से बना है और इनर कोर ठोस होता है मगर यह भी लोहे और निकल इत्यादि पदार्थों से बना होता है, उसके ऊपर के लेयर मेग्मा (लावा) खनिज लवण इत्यादि पदार्थ से बने होते हैं |
पृथ्वी के चुम्बकीय गुणों के कारण ही सूरज से किरणों के साथ आने वाली हानिकारक रेडीएसन तत्वों को मेग्नेटिक फील्ड के द्वारा बाहर फेंक देती है सिर्फ सूर्य के किरण को धरती की सतह तक आने देती है | दूसरों शब्दों में कहूँ तो एक सुरक्षा कवच का काम करती है | धरती के अन्तः भाग में सूरज के सतह के बराबर गर्मी होती है | आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरी सभ्यता आग के अंगारों के ऊपर आराम से जीवन व्यतीत कर रहा है | यही पृथ्वी की इको सिस्टम का कमाल है | इको सिस्टम ही है जिससे नए जीव जंतुओं के जीवन का संचार होता है और मानवता सुरक्षित सृष्टि द्वारा प्रदत्त आनंद का लाभ उठा पाती है | मानव जीवन के उत्रोत्तर उन्नति के लिए विकास जरूरी है मगर जब पृथ्वी के गर्भ से खनिजों का अनियंत्रित दोहन होगा, संभव है की अत्यधिक मात्रा में खनिजों के खनन से पृथ्वी के संरचना प्रभावित होंगे जिससे पृथ्वी की चुम्बकीय प्रणाली पर असर हो सकता है | अभी वैज्ञानिक इस विषय में कुछ नहीं कह रहे हैं मगर यूरोपियन स्पेस एजेंसी की रिपोर्ट से अंदाज लगा सकते हैं कि पृथ्वी की संरचना को छेड़ना खतरनाक हो सकता है | पृथ्वी के गर्भ में सूरज जैसी गर्मी और सतह पर हरे भरे पेड़ असंख्य जीवों का भण्डार, यही तो ईश्वर की रचना की खूबसूरती है | खनिजों की प्राप्ति के लिए प्राकृतिक पेड़ वृक्षों का सफाया करके उसके बदले में नकली फारेस्ट एरिया का निर्माण किया जायेगा तो निश्चित ही पृथ्वी की संरचना प्रभावित होगी और इसके दुष्परिणाम सामने आयेंगे और विभिन्न रूपों में आना आरम्भ हो गया है |
पूरी दुनियां में सृष्टि द्वारा उत्पन्न Natural forest ( प्राकृतिक जंगल ) का सफाया
हम अपनी जरूरतों के लिए या विकास के लिए जंगल का सफाया कर रहे है | ग्लोबल फॉरेस्ट रिसोर्सेस एसेसमेंट 2020 (एफआरए 2020) के अनुसार आरम्भ में जंगलों का बड़े पैमाने पर कटाई की गयी थी | एफआरए के अनुसार 1990 के बाद से दुनिया भर में 178 एम् एच ए प्राकृतिक जंगल नष्ट हो गए थे | उसके बाद वनों की कटाई पर अंकुश लगना आरम्भ हुआ |
लोंगों की जागरूकता और पर्यावरण विशेषज्ञों के सुझाव के कारण सरकारें सचेत हुई और धीरे धीरे प्रतिवर्ष जंगल काटना बंद होता गया | 2000-2010 में 5.2 एम् एच ए थी जो 2010-2020 में 4.7 एम् एच ए पर सिमट गयी | जंगल खेत ख़त्म होंगे तो बैलेंस बिगड़ेगा और वैज्ञानिक कहते हैं की इबोला कोरोना जैसे वायरस जंगल के जीवाणु है और ये जंगली जानवरों चमगादड़ इत्यादि में पाए जाते हैं | चमगादड़ तो अनंत कालों से पृथ्वी पर विराजमान है, आदिवासी भी जंगल में रहते हैं मगर ऐसी स्थिति देखने को नहीं मिली थी | कोरोना (covid-19) की पहचान 17 नवम्बर 2019 को चीन में हुई | विज्ञान के अनुसार कोरोना जीवाणु जंगली जानवर पक्षियों में रहता है | इस जीवाणु ने मानव शरीर में किसी तरह से प्रवेश पा लिया है अब इसे ख़त्म करना या इससे बचना एक चुनौती हो गया है |
विचारणीय पहलु यह है की विकास को लेकर पूरी दुनिया के राजनीतिज्ञ और पर्यावरण प्रेमियों की सोच में जमीन आसमान का फर्क दिखाई पड़ता है | अगर मैं भारतवर्ष की राजनीति की बात करूँ सरकारें किसी भी पार्टी की चल रही हो, विकास अर्थात बिजली | बिजली के लिए कोयले की खदानें चाहिए | सरकार विकास के नाम पर सैकड़ों गाँव को उजाड़ कर विशाल गड्ढे खोदकर कोयला या अन्य खनिज का उत्पादन करती है अब तो प्राइवेट कम्पनियाँ कोयला उत्खनन कर रही हैं |
सरकार बड़े बड़े कोल ब्लाक कॉर्पोरेट एजेंसी को आबंटन कर रही है | सरकार को ग्रामीणों और किसानों से जमीन लेनी पड़ती है | किसानों को अपनी अचल और अमूल्य जमीन सरकार को देनी पड़ती है | जब बिजली के उपभोग की बात आती तो इसका फायदा शहर को मिलता है क्योंकि सरकार की ऊर्जा नीति में गाँवों के लिए कम घंटे की बिजली सप्लाई और शहरों के लिए 24 घंटे की बिजली देने की प्रतिबद्धता होती है | शिक्षित वर्ग को मालूम है कि कोयला या अन्य बहुमूल्य खनिज पदार्थ सिर्फ वन आच्छादित जमीनों पर बहुधा पाए जाते हैं | जमीन सीमित हैं और प्राकृतिक वनों की कटाई करके नकली नर्सरी से उत्पन्न जंगल लगाने से क्या प्रकृति का इको सिस्टम बरकरार रह पायेगा | किसानों आदिवासियों की हजारों एकड़ भूमि लेकर बसे बसाए लोगों को विस्थापित कर जिनमें प्राकृतिक सदाबहार जंगल झरने सब का सत्यानाश कर हम कैसा विकाश चाहते हैं | प्राकृतिक जंगल ही असली जंगल हैं अब चूंकि सरकार के अधीन बहुत संवेदनशील एजेंसियां , विभाग आते है जिसमें पर्यावरण भी शामिल है | क्या सरकार के भय से पर्यावरण विभाग पूरी ईमानदारी से रिपोर्ट प्रस्तुत कर पाएंगे | बिलकुल नहीं | यह समस्या सिर्फ भारतवर्ष का नहीं है बल्कि सम्पूर्ण विश्व की ज्वलंत समस्या है | पूरी दुनिया में मौसम के बदलाव को स्पष्ट महसूस किया जा है |
असामान्य मौसम और अनियंत्रित गर्मी
मैंने एक जीव विज्ञान के जानकार से ऋतुओं के परिवर्तन होने का कारण पूछा था तो पता चला कि पूरी दुनिया के मौसम प्रभावित होने के एक मात्र कारण है कार्बनडाईआक्साइड या मानव द्वारा प्रकृति का विनाश | प्राकृतिक जंगल, कारखानों (ताप विद्युत, रासायनिक प्रयोग , युद्ध में प्रयुक्त होने वाले बारूद , कोयले की खान , वाहन इत्यादि ) और जीवों से उत्सर्जित कार्बनडाईआक्साइड को अवशोषित कर बदले में आक्सीजन छोड़ते हैं, मगर जंगल कम होने से co2 की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है | महासागर भी कार्बनडाईआक्साइड का अवशोषण करते है, जिससे समुद्र के जल में तापमान बढ़ रहा है | इससे समुद्री जीवों जैसे कोरल समुद्री शैवाल, मछली और भी सूक्ष्म समुद्री जीव के इको सिस्टम ख़राब हो रहे हैं | वैज्ञानिकों और पर्यावरण के जानकार जानते हैं इस असंतुलन से पृथ्वी पर कुछ भी असामान्य घटनाये देखने को मिल सकती हैं , तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघलेंगे इससे जल प्रलय का खतरा बढ़ सकता है |
प्राकृतिक झरने और जल स्रोत सूखने लगे हैं
भारत में तीन ऋतुएँ होती है ऐसा हम पढ़ते थे | बारिश का प्रभाव हर ऋतु में दिखाई देता था | मगर कुछ सालों से मौसम का चक्र खिसक गया है | जुलाई (बारिश) के सीजन में गर्मी, और अक्टूबर नवंबर दिसंबर (ठण्ड) के सीजन में बारिश होती है | सन 2020 अप्रैल मई जून में ठीक से गर्मी पड़ा ही नहीं |
औद्योगीकरण की वजह से मुख्यतः कोयला खदान खोलने से जंगल झरने और विशाल गड्ढों, कृत्रिम पहाड़ के निर्माण से, प्राकृतिक इको सिस्टम ख़राब हुआ है | आपको मौसम के परिवर्तन से पता चल रहा होगा | खदान के आसपास के गावों में बारूद युक्त पानी के सप्लाई तथा बारूद युक्त प्रदूषित वायु से मानव के साथ साथ खेत के कई सूक्ष्म मित्र जीवाणु ख़त्म हो रहे हैं | कृषि की उर्वरक क्षमता कम हो चुकी है | खेतों में पाई जाने वाली कई जीव जैसे गोल घोंघे, केकड़े, विशेष प्रकार की मछली और भी बहुत से जीव अब नदारत हैं | इसके लिए आपको किसी वैज्ञानिक की टेस्टिंग या रिपोर्ट की जरूरत नहीं है यह तो स्पष्ट रूप से किसानों को पता चल रहा है |
कोरोना एक सबक हो सकता है
प्रकृति के लिए मानव भी एक जीव है, मानव प्रकृति के द्वारा ही उत्पन्न है | अगर मानव प्रकृति के बुनियादी सिस्टम में अवरोध पैदा करेगा तो सृष्टि के पास नियंत्रण करने के अनेकों उपाय है | शायद कोरोना भी उनमें से एक हो और मानव को चेताना चाहती हो कि हम प्रकृति के समक्ष कुछ भी नहीं हैं |दुनिया भर के डॉक्टर, एजेंसियां, covid-19 के बचाव के लिए दवा बनाने में लगी हैं | उम्मीद हैं जल्द ही कोरोना वायरस की दवाई तैयार कर ली जाएंगी | मगर प्रकृति ने Corona ( कोरोना ) के माध्यम से इंसान को सबक सिखाया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ खतरनाक हो सकता है | अब मानव को जल जमीन और जंगल को संरक्षित करते हुए नियंत्रित विकास के रास्ते अपनाने होंगे | रासायनिक प्रयोग और Eco System को नुकसान पहुचाने वाले प्रणाली को त्यागकर नेचुरल विकास के मॉडल को अपनाना होगा तभी मानव और सृष्टि दोनों का कल्याण हो पायेगा | फोटो साभार पिक्साबे.कॉम, कार्टून्स बलभद्र श्रीवास, ग्राफ़िक्स गोष्ठीमंथन |
बलभद्र श्रीवास ब्लॉगर, सीमा श्रीवास