कभी आपने सोचने का प्रयास किया है,कि हमारी स्थिति ऐसी क्यों है ? अकसर सत्तापक्ष के द्वारा मुख्य रूप से भाजपा के द्वारा,यह सवाल हमेशा उठाये जाते हैं कि भारत में 70 सालों में कुछ भी नहीं हुआ | तो फिर आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी चौथी महाशक्ति की दावेदारी कर रही है और आर्थिक राजनितिक ताकत के रूप उभर रही है | क्या यह सब भगवान् के भरोसे हो गया | हम आजादी के बाद से हाथ पे हाथ धरे बैठे रहे | राजनितिक विश्लेषक मानते हैं कि यह महज राजनितिक पार्टियों की जुबानी जंग है | प्रत्येक पार्टी अपनी चुनावी एजेंडे के हिसाब से मुद्दा तैयार करती है | भारत की जनता को मालूम है, हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश हैं |
अब सवाल उठता है कि क्या वास्तव में 70 वर्षों में भारत ने कोई भी प्रगति नहीं की है, जनता के मन में भी यही सवाल कौंध रहे हैं कि आशानुरूप उन्नति क्यों नहीं हो पायी |
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भुखमरी देशों के कतार में भारत 103 पायदान पर है
ग्लोबल हंगर इंडेक्स के रिपोर्ट के अनुसार भुखमरी से ग्रसित कुल 119 देशों में भारत 103 नंबर में है | इसी से अंदाज लग जाता है कि आजादी के 70 सालों के बाद गरीबी भारत की स्थायी मेहमान क्यों है | 2018 के आंकड़े के अनुसार ईरान ,चीन, थाईलैंड, मलेशिया, साउथअफ्रीका, जैसे देश हमसे अमीर हैं | यहाँ तक हमारे छोटे छोटे पडोसी देश जैसे वियतनाम, श्रीलंका, नेपाल की हालत भारत से बेहतर है | गरीबों में सबसे गरीब होने के बावजूद भारत की साधारण जनता को पता ही नहीं है, साधारण जन मानस को बुनियादी जानकारी नहीं मिल पा रही है | क्योंकि पब्लिक पूरी जिंदगी दो जून की रोटी की जुगाड़ में लगी रहती है | समाचार पत्र जो चौथे स्तंभ हैं आज स्वयं के लिए आधार तलाश रहे हैं | क्योंकि पूरी मिडिया खासकर इलेक्ट्रोनिक मिडिया राजनितिक पार्टियों की बयानबाजी और सनसनाहट गर्माहट वाली ख़बरों में जनता को उलझाये हुए हैं | क्योंकि ज्यादातर गरमा गरम न्यूज़ राजनैतिक क्षेत्रों से आती हैं हाँ कुछेक समाचार पत्र हैं जो अपनी जिम्मेदारी संभालें हुए हैं | इलेक्ट्रोनिक मिडिया (टेलीविजन ) में ज्यादातर चैनल्स किसी न किसी कार्पोरेट घरानों से जुड़े हुए हैं | जिनके अपने व्यापारिक और स्व हितों की बाध्यता है, जिसके वजह से गंभीर विषयों पर रिपोर्ट नहीं बना पा रहे हैं | जनता से जुडी निष्पक्ष समाचार ग्रामीणों किसानो तक नहीं पहुँच पा रही है |
इसीलिए हम गोष्ठीमंथन के पोर्टल पर भारत की तस्वीर रखना चाहते हैं | अगर आप स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारत की नीतियों पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाता है कि सरकार जिसकी भी रही हो | सबने राष्ट्रीय हित में बहुत बढ़िया नीतियाँ बनायीं थी, पंडित श्री जवाहरलाल नेहरु से लेकर श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी तक | चुंकि आरम्भ में सरकार कांग्रेस की बनी थी | और ज्यादा समय तक कांग्रेस की सत्ता थी | लिहाजा उनके हिस्से में भारत के ढांचा को मूर्त रूप देने का अवसर ज्यादा आया | राष्ट्रहित में अनगिनत अभूतपूर्व योजनाओं का क्रियान्वयन हुआ है, जिसका जिक्र करना लाजिमी है |
राष्ट्र को मजबूत करने वाली जीवनदायिनी योजनायें
भारत के संविधान विशेषज्ञों और तत्कालीन भविष्य दृष्टाओं ने खुशहाल हिन्दुस्तान की कल्पना की थी | कुछ योजनाओं को मैंने लिखने का प्रयास किया है | जिसके बिना खुशहाल भारतवर्ष की कल्पना नहीं देखी जा सकती थी | 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान बनाया गया था | इसके साथ ही भारतीय राज्य बनाने के लिए 560 -विषम छोटी और बड़ी रियासतों का एकीकरण करके भारत को अटूट और अखंड राष्ट्र की बुनियाद रखी गयी थी | परिणामस्वरूप आज हम कश्मीर से कन्याकुमारी तक अखंड भारत और अजेय भारत तस्वीर को मानचित्र पर बड़ी मान सम्मान के साथ देख पा रहे हैं | जमींदारी व्यवस्था का समूल निवारण, हिंदू कोड बिल का अधिनियमन, योजना आयोग का गठन, पांडिचेरी गोवा और सिक्किम का भारत गणराज्य में एकीकरण,विशाल बांध का निर्माण (भाखड़ा, हीराकुंड, इडुक्की, नर्मदा, टिहरी, उकाई, इंदिरा सागर श्री सेलम आदि ), रेल नेटवर्क और राजमार्गों और सड़कों का विस्तार, जिससे भारत को दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क बनने का गौरव प्राप्त हुआ है | ग्रामीण भारत को सशक्त बनाने के लिए पंचायती-राज प्रणाली की स्थापना की गयी। 1971 के युद्ध में बांग्लादेश को संप्रभु राष्ट्र बनाने के लिए भारत सफल हुआ | विशाल पुलों का निर्माण, और बंदरगाहों का विस्तार हुआ, जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, महानदी, कृष्णा, गोदावरी, कावेरी, राजेंद्र सेतु आदि | बिजली का उत्पादन,औद्योगिकरण का विस्तार, कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण,प्रिवी पर्स का उन्मूलन, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, बेनामी लेनदेन निषेध अधिनियम, पिछड़ा वर्ग अधिनियम के लिए राष्ट्रीय आयोग ,पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान अधिनियम,
सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भोजन का अधिकार,मनरेगा योजना (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना),घरेलू हिंसा अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, भूमि मुआवजा अधिनियम, कंपनी अधिनियम, राष्ट्रीय पेंशन योजना,राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम, कार्यस्थल अधिनियम में महिलाओं का यौन उत्पीड़न, अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह कार्यक्रम, हरित क्रांति, श्वेत (दूध) क्रांति, कंप्यूटर क्रांति, सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति, दूरसंचार क्रांति, ऑटोमोबाइल क्रांति, महामारी और पोलियो का उन्मूलन, आयुध कारखानों का व्यापक विस्तार, अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह कार्यक्रम, भारत को दुनिया में चावल और दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक बनाना, वयस्क साक्षरता मिशन , आर्थिक सुधार / उदारीकरण,
इसमें श्री अटल बिहारी जी की शासनकाल की प्रधानमंत्री सड़क योजना का नाम भी है | जिसके वजह से आज गाँव शहरों से जुड़ पाए हैं | योजना छोटी लग रही है , मगर गांववालों से पूछेंगे तो उनका कहना है इस योजना ने उनके ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को नयी पहचान दी है | इतनी अच्छी योजनाओं और प्लान के बाद भी भुखमरी खत्म नहीं हो रही है, और विकास की गति मंथर है | कुछ तो कहीं गड़बड़ी है |
क्यों विकास की गति जाम है ?
यूनिसेफ वर्ल्ड हेल्थ ओर्गनाइजेशन के आंकड़ों के अनुसार देश में हर दिन औसत 25000 से ज्यादा बच्चे भूख से मर जाते हैं। सरकारी आंकड़ों में इसे कुपोषण से मौत बताया जाता है | क्योंकि सीधे “ भूख से मर जाना ” जैसे शब्दों का उपयोग वीभत्स लगता है, और सरकारी तंत्र की नाकामी पर चोट पहुंचाता है | आप हम सभी सरकारी तंत्र के शब्दजाल में उलझ जाते हैं | 425000 बच्चे माँ के कोख में मर जाते हैं | 8 से 9 लाख बच्चे लगभग पांच से 8 वर्ष तक के उम्र में ख़त्म हो जाते हैं | आजादी के 70 साल भी भारत में 19 करोड़ों लोगो को रोज का खाना नहीं मिलता है, भूखे पेट सोने के लिए मजबूर होना पड़ता है | कालाहांडी का नाम सुना होगा, भुखमरी का दूसरा नाम है | करोड़ों लोगों की प्रतिदिन की औसत आमदनी 50 से 100 रुपया है | यह सरकारी आंकड़ा नहीं है यह वास्तविक आंकड़ा है | शिक्षा बहुत महंगी है, और शिक्षण संस्थानों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण योग्य विद्यार्थियों का विश्वास इन संस्थायों से उठ चुका है | नौकरियां नहीं के बराबर हैं या लगभग ख़त्म हो चुकी हैं | किसानी करना मजबूरी का नाम है | सरकारी योजनायें इन तक पहुचती नहीं है | भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा है, भारत में दिनों दिन भ्रष्टों की संख्या में वृद्धि हो रही है | लोंगों का कहना है घूस की मांग उच्च अधिकारियों की तरफ से होती है | इसीलिए भ्रष्टाचार की व्यवस्था को जीवित रखा गया है | गरीब और गरीब हो रहा है और अमीर और अमीर | भारत में दुनिया के सबसे बड़े अमीर रहते हैं | देश का विकास हो रहा है लेकिन बिलकुल बेतरतीब तरीके से , ऐसा लगता है कहीं कोई लगाम नहीं है |
कहाँ सुधारने की जरुरत है ?
जन कल्याण के लिए कानून तो पहले से बने हुए हैं | बहुत सारी योजनाएं गरीबों के उत्थान के लिए चल रहे हैं | मगर ये योजनाएं सरकारी कार्यालयों और समाचार पत्रों और टेलीविजन में ज्यादा चलती हैं | जरुरत मंदों तक नहीं पहुँच पाती हैं | सरकार और जनता के बीच की कड़ी जिसे हम प्रशासन कहते हैं | प्रशासन को संचालन करने वाले अधिकारियों की उदाशीनता या निष्क्रियता की वजह से जनकल्याण की योजना अंतिम जरुरत मंदों तक नहीं पहुँच पाती हैं | हम अकसर देश की दुर्दशा के लिए राजनेताओं को कोसते हैं | मेरे विचार से देश की गरीबी के लिए ये अकेले जिम्मेदार नहीं हैं | जनप्रतिनिधि के साथ साथ जागरूक नागरिक और प्रशासनिक तंत्र भी जिम्मेदार हैं | जरुर जनप्रतिनिधि होने के नाते जनता के प्रति इनकी जवाबदेही है और इनकी मजबूरी भी है | क्योंकि इनको 5 सालों में ही सही, चुनाव के वक्त जनता के बीच जाना पड़ता है | मगर प्रशासनिक अधिकारीयों का क्या ? इनको जनता से क्या लेना देना ? जिनका काम सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को गरीब लोंगों तक पहचाना ही कर्तव्य है | प्रशासन संवेदनहीन जनता से कटी हुई है | सरकारीतंत्र को किसका भय है ? इनको तनख्वाह तो मिलेगा ही | सरकारी तंत्र की उदासीनता ही भारत को 70 सालों तक पीछे धकेलते रहे हैं | लोकतंत्र में सरकार की नीतियों का क्रियान्वयन सरकारी तंत्र के द्वारा ही संभव हो सकता है | आंकड़े बनाने में और कागजों में विकाश दिखाने में अफसर बड़े माहिर होते हैं | अगर अधिकारी अपने फर्ज का संपादन निष्पक्ष भाव से करेंगे तो निश्चय ही जनता को कानून का तथा सरकारी योजनायों का लाभ मिलेगा | अधिकारियों की भागीदारी सुचिनिश्चित करना जरुरी है | लापरवाही और भ्रष्टाचार में संलिप्त प्रशासनिक अफसर पर कठोर कार्यवाही के साथ साथ दंड का प्रावधान होना चाहिए | जिसकी जाँच सेवानिवृत न्यायाधीस के द्वारा हो | वर्ना कोई भी योजना गरीबों और किसानों का कल्याण नहीं कर सकती है | चाहे 100 साल क्यों न हो जाये | गरीबी ख़त्म नही होगी |
कैसे सुधार किया जाये ?
सरकारी तन्त्र को जनता के प्रति संवेदनशील बनाने के साथ साथ ,जनता को भी जागरूक होना पड़ेगा | सरकार का चुनाव करते समय जनता को मूल स्थानीय समस्या के आधार पर निर्णय करना चाहिए, दुर्भाग्य से चुनाव में भी हम जाति और धर्म देखते हैं | विकास हो या ना हो स्वजातीय बंधु को जिताना जरुरी समझते हैं | यही वजह है कि जातिगत कट्टरता बढती जा रही है | किसी बात के लिए सरकार को कोसना एक सामान्य चलन हो गया है | आज परिस्थिति यह है कि प्रजातंत्र जातितंत्र में परिवर्तन होने लगा है | हमारी मुलभुत समस्याए ज्यों कि त्यों है | जाति के नाम पर हम तुरंत इकट्ठा हो जाते हैं ,परन्तु किसी बुनियादी समस्या को लेकर इकठ्ठा नहीं हो पाते हैं | हम अलग अलग होकर प्रशासनतंत्र से लड़ नहीं सकते हैं | इसी बात का फायदा सरकारी अफसर उठाते हैं | अच्छी स्कीम के बाद भी जागरूकता और दबाव के अभाव में प्रशासनिक अमला इन योजनायों को शतप्रतिशत लागु नहीं करते हैं | और गरीबी हमें और मजबूती से जकड़ लेती है | 70 साल बाद भी हमें भूखे पेट सोने के लिए मजबूर होना पड़ता है | उम्मीद है युवक लोकतंत्र की ताकत को पहचान पाएंगे तभी गरीबी मुक्त भारत की कल्पना साकार होगी | गोष्ठीमंथन के चौपाल से आर्टिकल अच्छी लगे तो शेयर करें | photo courtesy pixabay , unsplash dot com, website myneta.info, Website adrindia.org
बलभद्र श्रीवास ब्लोगर/ प्रमुख सम्पादक कोरबा कुसमुंडा गोष्ठीमंथन ब्लॉग-न्यूज़ पोर्टल