जब टीवी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा पार्टी में शामिल होने की खबर आ रही थी | तब ज्यादातर लोगों को लगा था कि शायद यह खबर झूठी हो , पर सच पर यकीन करना पड़ा | कई लोग इस खबर को हजम नहीं कर पा रहे थे कि Congress का भविष्य कैसे बीजेपी के गोद में जा बैठेगा | राजनीति के विशेषज्ञ सिंधिया के जाने की खबर को अप्रत्याशित नहीं मान रहे थे | उनके हिसाब से यह तो होना ही था |
कुछ परम्परागत निष्ठावान कांग्रेसियों को सच को स्वीकार करने में परेशानी हो रही थी | क्योंकि सिंधिया कोई छोटे मोटे विधायक नहीं थे | मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिए प्रमुख जनाधार वाले लोकप्रिय नेता थे , विशेषकर राहुल गाँधी के युवा ब्रिगेड के प्रमुख चेहरा थे | उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया उत्तर प्रदेश के पार्टी प्रमुख थे उनके अगुआई में कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था | मध्य प्रदेश विधान सभा के इलेक्शन में कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, विजयी हुए थे, शिवराज को कुर्सी छोड़नी पड़ी थी |
एक कांग्रेसी का कहना था कि एमपी में कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया इसलिए सिंधिया नाराज थे | सिंधिया और दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच पावर की गुटबाजी थी, सिंधिया एमपी में अकेले पड़ गए थे और कांग्रेस आलाकमान सुलह कराने में असफल थे | बहरहाल सवाल है कि क्यों कांग्रेसी ही पार्टी छोड़ रहे हैं और बीजेपी ज्वाइन कर रहे हैं |
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मोदी के चुनावी रणनीति और दिग्गज कांग्रेसियों के बीजेपी में शामिल होने की होड़ से कांग्रेस हाईकमान कमजोर
सन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जब नरेन्द्र मोदी ने भाजपा की तरफ से भावी प्रधानमंत्री बनने हेतु रणनीति तैयार की थी, तब पूरे भारत के लोगों ने मोदी जी को सर आँखों में बिठाया | मीडिया से लेकर प्रशासनिक महकमे में मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में चुनाव से पहले स्वीकारोक्ति मिल चुकी थी | यही मोदी जी की चुनावी रणनीति थी | एक खूबसूरत सपना ” अच्छे दिन आयेंगे, भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी “ | एक ऐसा मुद्दा जिसके सुनने से भारतीय गरीब निम्न मध्यम वर्ग को अजीब सी ख़ुशी मिलती थी | सबको पता लग गया कि इस बार मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकता है | मीडिया अखबार सबके लिए मोदी जी चहेते बन गए थे |
कांग्रेस के प्रमुख नेताओं ने पार्टी छोड़ना शुरू कर दिया था | चारों तरफ “मोदी मोदी और मोदी “
ऐसे नेता जो कभी कांग्रेस में मंत्री रहे, राज्य के प्रमुख चेहरा थे कांग्रेस के खांटी नुमायदों में शुमार रहे, कांग्रेस में रहकर मंत्री पद का सुख भोगा, वर्षों कांग्रेस पार्टी की तले शासन में कई मंत्री पदों में सुशोभित रहे, कोई विधायक रहा, तो कोई यूनियन मिनिस्टर प्रतिष्ठा, पैसा नाम कमाया, यहाँ तक की मुख्यमंत्री रह चुके कांग्रेसी नेता भी, सब भुलाकर कांग्रेस छोड़कर भागने लगे | कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़ने के लिए बहाना तलाशने लगे थे, ऐसा लग रहा था जैसे कांग्रेस की नैया निश्चित ही डूबने वाली है | कांग्रेस के दलबदलू नेता सारे रिश्ते बंधन पार्टी के नमक को भूलकर और मोदी के संरक्षण में बीजेपी में शामिल होने को बेकरार हो चुके थे | उनके नजर में अब कांग्रेस पार्टी पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी या सिर्फ नाम की पार्टी रह जाएगी, इसीलिए अपने सुखद राजनीतिक भविष्य ले लिए कांग्रेसी अपने पुराने दल को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे थे | इस समय उनको नरेन्द्र मोदी के संरक्षण में जाना सबसे बड़ी बुद्धिमानी का काम लग रहा था | मोदी मतलब नेताओं का भविष्य |
सन 2014 के चुनाव से पहले लगभग 28 से ज्यादा कांग्रेसी पार्टी छोड़ चुके थे और भाजपा में शामिल हो चुके थे और लगातार अलग राज्यों से कांग्रेसी टूट टूट कर बीजेपी की जमात में शामिल होने लगे | कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं के नाम की लिस्ट :–
- यूपीए सरकार में पूर्व विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा,
- यूपीए सरकार में कपड़ा मंत्री रहे राव इंद्रजीत सिंह 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में शामिल
- 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले लोकसभा सांसद जगदंबिका पाल भाजपा में शामिल
- महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे,
- 2016 में राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड के पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उत्तराखंड के कई कांग्रेस नेता भाजपा में शामिल
- 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, कांग्रेस नेता रीता बहुगुणा जोशी, टेलीविजन पर कांग्रेस की प्रमुख प्रवक्ता थी भाजपा में शामिल
- सतपाल महाराज प्रवचन कर्ता कांग्रेस से मोह भंग, बीजेपी में मिलन
- 2016 में उत्तर प्रदेश कांग्रेस महत्वपूर्ण चेहरा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भोजपुरी टीवी फिल्म अभिनेता रवि किशन, अमरपाल त्यागी, धीरेंद्र सिंह भाजपा के हो गये
- 2016 में मणिपुर के मुख्यमंत्री, एन. बीरेन सिंह, कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल
- 2016 में अरुणाचल प्रदेश में, विधानसभा चुनाव से पहले प्रेमा खांडू ने भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल
- 2016 में असम विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस उप मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा भाजपा में शामिल
- दिल्ली से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कृष्णा तीरथ,
- 2017 में उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेता मुख्यमंत्री एनडी तिवारी अपनी पत्नी उज्ज्वला और बेटे रोहित के साथ भाजपा में शामिल
- 2018 में छत्तीसगढ़ से, कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, रामदयाल उइके भाजपा में शामिल
- 2019 में गुजरात के सबसे पुराने कांग्रेसियों गुजरात विधानसभा में विपक्ष के नेता पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला भी भाजपा में शामिल
- 2019 के चुनावों से कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता टॉम वडक्कन पहले भाजपा में शामिल
- 2020 में पूर्व केंद्रीय ऊर्जा मंत्री और कांग्रेस के “उदीयमान ” नेताओं में से एक, ज्योतिरादित्य सिंधिया, 22 कांग्रेसियों के साथ भाजपा में शामिल
- कांग्रेस महिला मोर्चा की अध्यक्ष बरखा सिंह भाजपा में शामिल
- इसके अलावा भारत के सभी छोटे बड़े राज्यों गोवा चेन्नई कर्नाटक से कांग्रेसी पार्टी छोड़ दिए
- चुनाव के समय कुछ और समर्पित कांग्रेसी पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होंगे
कांग्रेस क्या किसी ने भी नहीं सोचा होगा कि थोक के भाव में कांग्रेसी पार्टी छोड़ कर भाग जायेंगे | जिस पार्टी में कुछ महीने पहले तक यूनियन मिनिस्टर थे, पार्टी की गुणगान करते अघाते नहीं थे | टीवी पर बीजेपी की आलोचना करते थे | रातों रात एक पल में बदल गए और कांग्रेस पार्टी को ही दोष देने लगे | बीजेपी में जाना है तो कुछ तो पार्टी की आलोचना करनी पड़ेगी लिहाजा कुछ लोगों को कांग्रेस में रहकर घुटन महसूस हो रही थी और अपनी जमीर की आवाज पर बीजेपी में शामिल हो गये, किसी ने पार्टी में वंशवाद का आरोप लगाया तो कुछ को पार्टी में अधिनायकवाद दिखाई दी | जिन्होंने पूरी जिन्दगी कांग्रेस के प्रभुत्व के कारण सत्ता का आनंद उठाया उनको अचानक कांग्रेस दल में बुराई ही बुराई दिखाई दे रही थी | कांग्रेस पार्टी को छोड़ने वाले कांग्रेस के सिपाहियों की बीजेपी में जाने के लिए भगदड़ मची हुई थी | मोदी जी की कांग्रेस विहीन भारत के आव्हान को कांग्रेसी ही पूरा करने को आमादा हो गए थे, भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेसी ही कांग्रेसी दिखाई देने लगे | कांग्रेस पार्टी के लिए निष्ठा, पार्टी का सिद्धांत, पार्टी से कमाए नाम, पैसा, मर्यादा, सब एक झटके में छोड़ बेगाने बन गए |
जब पार्टी में ही विद्रोह हो जाये पूरी पार्टी ही संघटन छोड़कर विरोधी पार्टी में शामिल हो जाये तब विरोधी पार्टी से लड़ना असंभव हो जाता है | तब दल का कप्तान कितना भी बहादुर हो कुछ नहीं कर सकता है | ऐसी स्थिति कांग्रेस पार्टी की थी और चंद सिपाही को लेकर कोई कितना टक्कर दे सकता है | कोई भी रणनीति योजना काम नहीं कर रही थी, लिहाजा पार्टी में हताशा | पार्टी हाईकमान को समझ में नहीं आ रहा है कि पार्टी के किस नेता पर भरोसा करें | समर्पित कांग्रेसी पार्टी की टूट से दुखी थे मगर कुछ नहीं कर सकते थे | उनको एक ही उम्मीद दिखाई दे रही थी की जिस तरह सोनिया गाँधी ने कांग्रेस को एक बार संगठित कर खड़ा किया था वैसे ही इस बार किसी तरह का चमत्कार कर पार्टी को पुनः जीवन दान दे | लेकिन सोनिया गाँधी की स्वास्थ्य, अवसरवादी दलबदलू कांग्रेसी नेताओं की दगाबाजी से सोनिया गाँधी को जरूर बहुत धक्का लगा होगा शायद इसीलिए वह किसी भी तरह की लीडरशिप से बचना चाहती थी | सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष पद में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है | इसीलिए पार्टी में भीतरघाती नेताओं की जानकारी होने पर भी उन पर लगाम लगाने में सोनिया गाँधी असमर्थ दिखाई पड़ रही है |
गौरतलब है कांग्रेस पार्टी के बिखरने पर कई बार गांधी परिवार ही सामने आया | पार्टी को एकजुट किया, विजय दिलवाया, आज की राजनीति देश सेवा कम व्यापार ज्यादा है और प्रायः सभी पार्टियों में वंशवाद है, लेकिन सोनिया गाँधी के परिवार और उनके लीडरशिप पर लोगों और विपक्षी दलों द्वारा खूब आरोप लगाये गए | जबकि कई बार अवसरवादी कांग्रेसियों ने कांग्रेस को बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी |
कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी जनमानस के मुख्य बुनियादी मुद्दों को उठाने में चुक गए और बीजेपी द्वारा फेंके गए मसलों पर उलझे
नरेंद्र मोदी तथा बीजेपी की सबसे बड़ी खूबसूरती है या कमाल की चालाकी है कि यह विपक्ष को बुनियादी मुद्दों से भटकाने में सफल हो जाती है | विपक्ष उन्हीं मुद्दों का विरोध करते हुए दिखाई देता है जिसे भारतीय जनता पार्टी उन्हें परोसती है |
ज्वलंत मुद्दों पर सार्थक बहस करने के बजाय हलकी मनोरंजक बहस जैसे मोदी जी का लाख रुपये का कोट | राफेल डील पर लोगों को जागरूक करना बुरी बात नहीं थी अगर कहीं कोई दलाली हुई है, ज्यादातर राजनीतिक पार्टी पर सौदेबाजी में दलाली करने का आरोप लगता ही है, विदेशी मामलों के जानकारों के अनुसार भ्रष्ट नेता दलाली करते हैं कोई नई बात नहीं है | नेता चुनाव क्यों लड़ते हैं और जीतने के लिए सरकार बनाने के लिए क्या, क्या, हथकंडे अपनाते हैं भारत में, जनता को सब मालूम है |
मगर राफेल के विषय को गंभीरता से जनमानस के समक्ष रखना अच्छा काम था एक विपक्ष के नेता के हिसाब से, लेकिन राहुल गांधी ने मोदी जी की स्टाइल पकड़नी चाही जैसे की वह हर सभा में माँ बेटे की सरकार से शुरू करते थे, काउंटर अटैक ठीक है, पर राफेल डील को पूरी संजीदगी के साथ तथ्यात्मक तरीके से सभा में प्रस्तुत की जाती तो शायद जनता राहुल गांधी से जरूर जुड़ती |
लेकिन राहुल गांधी ने गंभीर विषय को मसखरा अंदाज में पेश किया | राफेल का मुद्दा सन 2019 तक उठाते रहे कभी नरेंद्र मोदी को चोर कहा जो किसी भी दृष्टि से प्रधानमंत्री जैसे सम्माननीय पद के गरिमा के लिए उचित संबोधन नहीं था | राफेल जैसे गंभीर मुद्दों पर भारत के अधिकांश पब्लिक ने कोई रुचि नहीं दिखाई, क्योंकि ये सब्जेक्ट जनता के जीवन से डायरेक्ट जुड़े हुए विषय नहीं थे | हर सभा में प्रधानमंत्री को चोर कहना या कहलवाना लोगों को ठीक नहीं लगा, यह बात अलग है कि नरेंद्र मोदी जी भाषण में सोनिया गांधी और राहुल गाँधी प्रमुख निशाना होते थे | अब तक के जितने प्रधानमंत्री हुए किसी प्रधानमंत्री की भाषा सोनिया और राहुल गाँधी के परिवारों के प्रति या विरोधी दल के प्रति इतनी तीखी ( Taunt ) नहीं थी | परन्तु राहुल गांधी को भाषा में शालीनता बरतनी चाहिए थी अपने टारगेट पर सीधी नजर रखना चाहिए था | मुद्दों से भटकने और स्तर हीन मुद्दों को उठाने की वजह से जनता ने राहुल गाँधी को सीरियसली नहीं लिया बल्कि स्वयं के लिए मजाक के पात्र बन गए |
नोट्बंदी (Demonetization) : राहुल गाँधी को संयोग से बहुत संवेदनशील मुद्दे मिले जिसे जनता तक पहुँचाया जा सकता था, जो जनता के बुनियादी जरूरतों से जुड़े हुए थे जैसे की नोट्बंदी | सन 2016 में नोट्बंदी में सम्पूर्ण भारत के गरीब मध्यम तबके के लोगों को भारी परेशानी हुई थी, शादी मृत्यु अन्य कामों के लिए लोग स्वयं के पैसे के लिए तरसते रहे, अपनी मेहनत की कमाई की जमा पूंजी निकालने के लिए लोग लाइन में खड़े होते थे | मात्र दिन में 2000 रुपया निकलने का अनुमति था | कितनों की जान चली गयी | कितने बुजुर्ग ग्रामीण महिला पुरुषों ने कभी बैंक का दरवाजा नहीं देखा था जिनके बैंक अकाउंट नहीं थे सब ने मजबूरी में दूसरे लोगों की मदद से कमीशन देकर जुगाड़ के बल पर नोट बदलवाए | अचानक ऐसी तबाही मच गई थी पूरे भारत जैसे गरीब देश में | लोगों का कहना है कि अनावश्यक और बिना तैयारी के सिर्फ उत्तर प्रदेश के चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोट्बंदी को आतंकवाद और काला धन का भय दिखाकर लागू करा दिया था | काला धन आम लोगों के पास नहीं था इसलिए नहीं आया जिनके पास था वो बड़े लोग थे उनको ऐसे मामलों से निपटना आता था और उनकी पहुँच राजनीति के शीर्ष पदों तक थी | अगर जनता की नजर से देखा जाये तो यह नोट्बंदी सिर्फ राजनीतिक था, इस घटना ने दिखाया की सत्ता की लालच में इंसान कितना क्रूर हो सकता है |
अनुभवहीनता की वजह से राहुल गांधी इस मुद्दे को पब्लिक तक पहुंचाने में असफल रहे और अपनी छवि के विपरीत मोदी जी के टोंटिंग भाषा ( Taunt style ) जो अकसर अपने विरोधियों को खिजाने के लिए प्रयोग करते हैं, राहुल गाँधी ने भी मोदी जी की भाषण की स्टाइल पकडनी चाही जो उनके व्यक्तित्व के लिए, राजनीतिक फायदे के लिए खतरनाक साबित हुआ | बेहतर होता कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से सलाह मशवरा कर लेते |
जी एस टी (GST) : मोदी जी ने जी एस टी लगाया जिसमें कहा गया था पुरे भारत में एक ही टाइप का टैक्स भरना पड़ेगा व्यापारियों को | राहुल गाँधी ने इसे गब्बर सिंह टैक्स कहा | व्यापारियों से ज्यादा विरोध राहुल गाँधी की तरफ से और कांग्रेस पार्टी की तरफ से आ रहा था | जनता कनफ्यूज थी इस जी एस टी टैक्स को व्यापारियों को भरना है तो हमें किस बात की चिंता है इसमें कैसा विरोध | व्यापारी तो वर्षों से जनता को उल्लू बनाकर ज्यादा मुनाफा कमाते हैं और सरकार को टैक्स भी नहीं भरते हैं | अगर राहुल गाँधी यह समझाने में सफल हो जाते कि मोदी जी ने जो टैक्स लगाया है उसे व्यापारी नहीं जनता की जेब से भरा जाएगा , टैक्स की मार जनता को ही पड़ेगी क्योंकि अंत में व्यापारी ग्राहक से पैसे लेकर ही टैक्स भरने वाली है | संवेदनशील मुद्दे को हंसी मजाक वाली स्टाइल में गब्बर सिंह टैक्स कहकर जनता के सामने पेश करने लगे, पब्लिक खूब थाली बजाती थी, लोगों को राहुल के सभा में खूब मजा आने लगा था फ्री का एंटरटेनमेंट हो रहा था | राहुल को जनता से सिर्फ ताली मिली कांग्रेस के हाथ खाली रहे कोई वोट नहीं मिला |
नेताओं को गहराई से आकलन करने वाली जनता को राहुल गांधी से रही सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी | प्रत्येक सभा में एक ही टाइप के भाषण राफेल और मोदी चोर या गब्बर सिंह टैक्स, मोदी से सवाल पूछना ( मोदी जी की टोंटिंग भाषा का जवाब टोंट स्टाइल में देना पब्लिक को अच्छा नहीं लगा ) |
आर्टिकल 370 और 35A का संशोधन (Revocation of 370 article and 35A the special status of Jammu and Kashmir) : यह एक अति संवेदनशील मुद्दा है जिसमें बीजेपी अपने घोषणा पत्र में 370 अनुच्छेद को हटाने की बात कहती थी | मगर इस विषय में कांग्रेस के अपने लोगों में विरोधाभास दिखाई दिया |
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने और कांग्रेस के बहुत से लोगों ने 370 और 35A के संशोधन को भारतीय हित में बताया था | राहुल गाँधी इस विषय पर कोई स्पष्ट राय नहीं रख पाए इससे भारत की जनता को मोदी सरकार का फैसला उचित तथा न्यायसंगत लगा था | राहुल गांधी का इस आर्टिकल का विरोध करने का लॉजिक पब्लिक को समझ में नहीं आया या राहुल गाँधी जनता को अपने विरोध करने का सही और उचित कारण नहीं बता पाए | इसका खामियाजा 2019 के चुनाव में उठाना पड़ा | यह अलग बात है कि विदेशी मीडिया और कुछ नेताओं ने जिस तरीके से कश्मीर के लीडरों को नजर बन्द कर पुरे राज्य को दुनिया से पूरी तरह अलग करके इन्टरनेट और प्रचार तंत्र पर पाबन्दी लगाकर 370 अनुच्छेद को संशोधन किया यह लोकतान्त्रिक देश के लिए थोड़ा अटपटा था | इस विषय को राहुल गांधी एक विरोधी नेता की हैसियत से जनता के सामने तथ्यात्मक तस्वीर रख सकते थे |
इसी तरह CAA और NRC के सम्बन्ध में राहुल गाँधी ने जनता को यह बताने में असफल रहे, कि क्यों CAA का विरोध करना चाहिए या CAA में क्या कमी है | जबकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने CAA के कमियों को दिल्ली के जनता को समझाने में कामयाब रहे, मगर इस आन्दोलन से अपने आप को दूर रखा |
पेट्रोल की बढ़ती कीमत महंगाई, कालाबाजारी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे विषय को उठाना चाहिए था | जबकि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो विपक्षी दल बीजेपी ने पेट्रोल और रसोई गैस की बढ़ती कीमत को लेकर पुरे भारत में हंगामा खड़ा कर दिया था | बीजेपी के राष्ट्रीय नेता से लेकर आम कार्यकर्ता अपने छोटे, छोटे ब्लाक तहसील स्तर पर, भ्रष्टाचार महंगाई को लेकर खूब धरना प्रदर्शन करते थे | राहुल गाँधी तथा कांग्रेस पार्टी आपसी गुटबाजी के कारण नहीं कर पाए | कांग्रेस के भीतरघाती नेता अन्दर ही अन्दर बीजेपी में शामिल होने के लिये जुगाड़ में लगे रहे और पार्टी के विरोध में कार्य करते रहे | सन 2019 के चुनाव होने तक मोदी के द्वारा परोसे गए विषय में राहुल गांधी उलझे रहे, इससे जनता कांग्रेस से दूर होती चली गयी |
हालाँकि जनता मोदी के महंगाई पर काबू ना कर पाने के कारण से त्रस्त है, कोई रोजगार नहीं है किसी के हाथ में पैसा नहीं है, इतनी कमियां हैं कि अगर ठीक से कांग्रेस जनता के बुनियादी मुद्दों को उठाती और इनके लोकल नेताओं के द्वारा जनहित के लिए मोदी के प्रशासनिक तंत्र से सवाल जवाब करती और रोड में, गलियों में, सिस्टम से भिड़ जाती, तो लोगों को अहसास होता कि कोई उनकी बात कह रहा है उनके लिए लड़ रहा है , राहुल गाँधी ने निराश किया , लोगों का कहना है हम मोदी के बदले में किसको लाये | कांग्रेस में राहुल गाँधी में मेच्योरीटी नहीं है तथा कोई भी नेता मोदी के विकल्प के रूप दिखाई नहीं दे रहा है | इसी बात का फायदा मोदी सरकार को मिल रहा है | यह भ्रम है कि मोदी सरकार की पापुलारिटी स्थिर है, नहीं, पहले जैसी नहीं है |
Congress की तरफ से योद्धा अकेले राहुल गाँधी है
बीजेपी के लड़ाकू योद्धा और स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं इसके अलावा इनके डिजिटल इंडिया, आईटी सेल बहुत मजबूत है | तमाम मीडिया जो गोदी मीडिया के नाम से जाने जाते हैं, सब सरकार के प्रचार में लगे हैं | सबसे ज्यादा डर लोगों को तथा विरोधी पार्टी को मोदी सरकार के प्रशासनिक तंत्र से हैं जिनके वजह से लोग पार्टी के खिलाफ बोलने से डरते हैं | पहले पब्लिक को यह सब पता नहीं होता था लेकिन अब भारत के आम जनता तक को बीजेपी के भय तंत्र के कारनामे की जानकारी हो चुकी है | राजनीति में विरोधियों को कमजोर करने के लिए सत्ता पक्ष प्रशासनिक तंत्र का सहारा लेती है कई बार झूठे मुकदमे बनाये जाते हैं |
उसी तरह से कांग्रेस की तरफ से सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी हैं | मोदी बीजेपी और टीवी प्रचार तंत्र में मजबूत जनता के पसंदीदा स्वीकृत नेता हैं | जबकि राहुल गाँधी विपरीत परिस्थिति में भी अकेले मोदी से टक्कर लेने का हिम्मत दिखा रहे हैं | जबकि कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी के कार्यशैली को लेकर नाखुश हैं, पार्टी के भीतर ही भीतर गाँधी परिवार के नेतृत्व पर विरोध आरम्भ हो चूका है | पार्टी के अन्दर कांग्रेस के बड़े नेता आलोचना करने के बजाय पार्टी के लिए साझा कोई रणनीति तैयार करते तो शायद सोनिया गाँधी और कांग्रेस के भविष्य के लिए अच्छा होता |
राजनीतिक समीक्षकों को राहुल के समझ की परख हो या न हो पर जनता को पता है | मैंने लोकल कांग्रेसी कार्यकर्ता से पूछा था कि राहुल गाँधी तक ग्राउंड लेवल के कार्यकर्ताओं की बात पहुँचती है या बड़े लीडर के घेरे में बात दब जाती है | उनका जवाब था राहुल गाँधी को भी मालूम है कि उनके ही पार्टी के कुछ नेता नाखुश हैं, इसीलिए कांग्रेस के अध्यक्ष पद को उन्होंने अस्वीकार कर दिया |
कांग्रेसियों के बीजेपी में जाने से अपने नेताओं की लोयल्टी पर कांग्रेस हाई कमान का चिंतित होना स्वाभाविक है |
अब बची खुची कार्यकर्ताओं और लीडरों पर अंकुश लगाने से पार्टी के अन्दर बगावत शुरू हो जायेगी | कांग्रेस के अस्तित्व को बचाने के लिए हालत से समझौता करना लाजिमी हो गया है | ज्यादा सख्ती बरती गयी तो लालच में कुछ और पार्टी कार्यकर्ता एवं नेता जाते, जाते सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और उनके परिवार पर वंश वाद की आरोप तथा पार्टी में लोकतंत्र की कमी दुहाई देते हुए कुछ कांग्रेसी, कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लेंगे |
अब स्थिति यह है कांग्रेस को बचाने के लिए या कांग्रेस में समर्पित कार्यकर्ता के रूप अभी केवल राहुल गाँधी और उनके परिवार के लोग हैं और कुछ बेनाम कार्यकर्ता बच गए हैं | शेष का पता नहीं कब कांग्रेस छोड़कर किसी और पार्टी में शामिल हो जाये या महाराष्ट्र के शरद् पवार, ममता बैनर्जी, जगन्नाथ रेड्डी की तरह खुद का पार्टी खड़ा कर दें | राहुल गाँधी को अपने जमीनी कार्यकर्ता से डायरेक्ट संवाद करना चाहिए इससे पार्टी की ग्राउंड स्थिति की वास्तविकता का पता चलेगा | तभी भ्रम के भंवर जाल से निकल पायेंगे |
कांग्रेस में समर्पित नेता या मेहनती कार्यकर्ताओं की कमी, मौकापरस्त नेताओं ने पार्टी को बर्बाद किया
जब पार्टी में संकट काल चल रहा है कांग्रेसी नेता ट्विटर (Twitter) पर और टीवी में वक्तव्य देकर पार्टी के अन्दर की बात या गाँधी परिवार के लीडरशीप पर सवाल खड़ा करने की कोशिश हो रही है | अभी हाल ही में कुछ 23 लोगों ने पार्टी की दुर्दशा पर कांग्रेस आलाकमान को चिट्टी भी लिखी थी | हो सकता हैं कि कांग्रेस की गिरती लोकप्रियता से दुखी होकर इन नेताओं ने चिट्टी लिखी थी या इन नेताओं ने सुझाव पत्र माध्यम से आलाकमान को घेरने का प्रयास किया था | खबरें यहाँ तक थी कुछ कांग्रेसी नेता आलाकमान को बीजेपी में जाने का या पार्टी छोड़ने का भय दिखाकर सौदेबाजी करने लगे हैं | इससे सोनिया गाँधी आहत हैं जिसकी वजह से गाँधी परिवार को अपने ही नेताओं से उम्मीद कम हो गयी है |
एक तरफ कांग्रेस से नेताओं का पलायन जारी है दूसरी तरफ पार्टी के अन्दर कुछ कमियों को सुधारने के बहाने असंतुष्ट नेताओं ने चिट्टी लिखकर हाईकमान की परेशानी को बढ़ा दिया है |
बुजुर्ग निष्ठावान कांग्रेसी लीडर के अनुसार कांग्रेस हाईकमान के अपने ही विश्वस्तों के बीजेपी में जाने से कांग्रेस के नेता या कार्यकर्त्ता पर भरोसा करने में शायद दिक्कत हो रही है | इसीलिए पार्टी प्रेसिडेंट पोस्ट के लिए गांधी परिवार राजी नहीं हो रहा है | हमारे जमाने में कांग्रेस के लिए काम करना सम्मान की बात होती थी कितने कांग्रेसी पूरी जिन्दगी पार्टी के लिए सेवा देते रहे कभी पद का लालच नहीं किया |
सच्चाई यह है कि केवल गांधी परिवार ही कांग्रेस को कंट्रोल कर सकता है | यह श्रीमती इंदिरा गाँधी से लेकर श्रीमती सोनिया गांधी तक प्रूफ हो चूका है | जिस दिन गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी की बागडोर छोड़ देंगे उसी दिन कांग्रेस के अनगिनत टुकड़े हो जायेंगे |
सलाह देने वालों में से कोई जना धार वाले नेता नहीं है अगर इन नेताओं में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी तो कोई किसी की बात सुनने वाला नहीं होगा ना ही कोई किसी की बात मानने वाला होगा | ऐसी स्थिति में पार्टी में खुल्ले आम वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो जायेगी, जो अंत में पार्टी का समूल ढांचा को बरबाद कर देगी | कांग्रेस पार्टी का नाम इतिहास में सिर्फ याद करने के लिए रह जाएगा |
अभी बीजेपी का सुनहरा दिन चल रहा है उसके पीछे उनके वफादार कार्यकर्ताओं और आरएसएस के अनुशासित तथा कठोर मेहनत का परिणाम है | यह एक दिन में नहीं हुआ है वर्षों लग गए | आरंभ में बीजेपी को कोई नोटिस नहीं करता था लेकिन बीजेपी हमेशा कांग्रेस के सामने टक्कर के लिए खड़ी हो जाती थी और बीजेपी के लीडर बुरी तरह हार जाते थे | इसके बावजूद किसी बीजेपी कार्यकर्ता ने या बड़े नेताओं ने कांग्रेस के द्वार को देखा तक नहीं | कितने वर्षों बीजेपी विपक्ष में रही उनके किसी नेता ने पार्टी नहीं बदली न हिम्मत हारी | बीजेपी ऐसे ही समर्पित कार्यकर्ताओं की फ़ौज से तैयार हुई है जिसका परिणाम आज पूरी दुनिया देख रही है |
आजादी के बाद से कांग्रेस सत्ता में रही | चुनाव जीतने के लिए पार्टी का चुनाव चिन्ह मिल जाना ही काफी होता था ज्यादा कुछ प्रयास नहीं करना पड़ता था | अब समय के साथ और बीजेपी के फेस टू फेस टक्कर से और जनता के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं का संघर्ष से लोगों का मन बदलने लगा | कांगेस राज में हुई महंगाई, भ्रष्टाचार को बीजेपी ने जन मानस तक पहुंचा दिया और लोगों के मन को परिवर्तन करने में सफल हुए | केवल नरेंद्र मोदी के आने मात्र से 2014 का चुनाव नहीं जीता गया है | स्वतः ही ऐसी परिस्थिति बन गयी थी कि कांग्रेस को हटाने के लिए जनता पहले तैयार बैठी थी |
दूसरी तरफ कांग्रेसी नेताओं को मंत्री पद का लालच पड़ गया था | उनको आभास हो गया था कि मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है इसीलिए चुनाव से पहले मौकापरस्त कांग्रेसी और कांग्रेस के शासन में मंत्री पद के लालसा रखने वाले नेता, कभी कांग्रेस के मुखर चेहरा माने जाने वाले, सभी पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए | एक होड़ लग गयी क्या कांग्रेसी नेता, मंत्री, सब भागने लगे बीजेपी में | इससे यही पता चलता है कि कांग्रेसी नेताओं में पार्टी के उद्देश्य, विचारधारा अथवा हित से कोई लेना देना नहीं था, कांग्रेस पार्टी स्वार्थी मौकापरस्त नेताओं से भरी पड़ी थी |
चूंकि वर्षों तक कांग्रेस ही राज करते आई थी इन नेताओं को कांग्रेस के टिकट मिलने से से ही चुनाव जीत जाते थे इसलिए लोभवस पार्टी से जुड़े रहे और सत्ता का सुख भोगते रहे | अब कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो गये हैं , इनको लगा इस पार्टी से जुड़े रहने से कोई फायदा नहीं है | कांग्रेस के बैनर से चुनाव जीतना भी कठिन दिखने लगा तो तुरंत पार्टी बदल ली | क्योंकि कांग्रेस में विधायक, मंत्री बनना संभव नहीं लग रहा था इसलिए अवसरवादी कांग्रेसी नेताओं ने दल से पलायन करने में भलाई समझी और बीजेपी में शामिल हो गए |
कांग्रेस के नेता को बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता नेता से कुछ सबक सीखना चाहिए | पार्टी के नियम सिद्धांत पार्टी कार्यकर्ता से बड़े होते हैं |
क्या भगोड़े कार्यकर्ता को पार्टी में पुनः प्रवेश नहीं देना चाहिए ?
अभी कुछ दिनों से कांग्रेस में दूसरे पार्टी में जाने का सिलसिला थमता हुआ नजर नहीं आ रहा है | उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव से पहले एक पुराने कांग्रेसी नेता जतिन प्रसाद का बीजेपी में पदार्पण हो गया | जो अभी कांग्रेस में हैं उनका कहना है उनके जाने से उत्तर प्रदेश के कांग्रेस संगठन को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला जबकि बीजेपी इसे अपने लिए तुरुप का पत्ता समझ रही है | अगर जतिन प्रसाद बीजेपी पार्टी के बैनर तले चुनाव जीत जाते हैं | तो यह माना जायेगा कि कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं का लोगों से जुड़ाव में अवरोध था या कांग्रेस अब जनता द्वारा तिरस्कृत पार्टी हो गयी है इसलिए लोग कांग्रेस के नेता को वोट नहीं देते हैं | मगर जब वही नेता मोदीजी के पार्टी में बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तो जनता बहुमत से जीताकर स्वागत करती है |
बीजेपी को आलोचना करने का मौका मिल जायेगा कि कांग्रेस पार्टी के पास कोई जना धार नेता नहीं है और पार्टी के पास ग्राउंड स्तर पर कार्यकर्ता नहीं है |
जतिन प्रसाद की जीत कांग्रेस में असफल रहे नेताओं के लिए एक प्रेरणा का काम करेगा | जतिन प्रसाद के चुनाव जीतने से शेष बचे कांग्रेसी नेता कांग्रेस छोड़ने में गुरेज नहीं करेंगे और देखते, देखते पार्टी खत्म हो जाएगी | अब प्रियंका गाँधी के लिए बीजेपी नहीं कांग्रेसी ही परेशानी खड़ी करेंगे | वर्तमान परिदृश्य के अनुसार मायावती और समाजवादी और कांग्रेस एक दूसरे से भिड़ेंगे | तीनों पार्टी के वोटर गरीब और लगभग एक विशेष वर्ग से आते हैं, जिससे वोट का बँटवारा होगा जतिन प्रसाद के जाने से मायावती और समाजवादी के वोट बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा मगर कांग्रेस के वोट बैंक पर निश्चित सेंध लगेगी |
अभी बीजेपी के समय काल है इसलिए शायद बीजेपी वाले इसे सियासी दांवपेच मानेंगे | अगर एक पार्टी से दूसरे पार्टी में पलायन चलता रहा तो आगे सभी राजनीतिक दलों के लिए मुश्किल साबित हो सकता है |
लोकतंत्र में दमदार विपक्ष का होना बहुत जरूरी है | इसलिए भारतीय संसदीय प्रणाली के निष्पक्ष संचालन हेतु मजबूत विपक्ष के रूप में इंडियन कांग्रेस पार्टी का कमजोर होना या बिखर जाना देश हित में नहीं है | पार्टी में कठोर प्रशासन की जरूरत है दलबदलू नेता अपनी उच्च महत्वाकांक्षी आदत के अनुसार किसी पार्टी के लिए वफादार नहीं बन सकेंगे ऐसे लोगों को रोकने से पार्टी का कल्याण नहीं होगा | दलबदलु नेता पार्टी के लिए कभी भी खतरा साबित हो सकते हैं चाहे वह किसी भी पार्टी के हो | उसके बदले नए लोगों को पार्टी का बागडोर दिया जाना चाहिए | पार्टी छोड़ चुके नेता, कार्यकर्ता को कभी भी पार्टी में वापस नहीं लाना चाहिए | क्योंकि मुसीबत के समय पार्टी को छोड़ने वालों पर विश्वास करने से बाकी समर्पित कार्यकर्ता के मनोबल को आघात पहुंचेगा | इसलिए बागी, दलबदलुओं, को हमेशा के लिए दल से बेदखल करना ही उचित निर्णय होना चाहिए | तभी पार्टी स्थिर रह पायेगी | सारे राजनीतिक दल को एक नियम बनाना चाहिए, किसी भी स्थिति में पार्टी से निकले कार्यकर्ता को वापस पार्टी में प्रवेश न कराया जाये | कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे प्रदेशों में पार्टी के लिए ग्राउंड लेबल में कार्यकर्ता तैयार करने होंगे और पार्टी को किसी से गठबंधन करने के बजाय स्वयं के दम पर दल को सक्षम बनाना चाहिए | Indian National Congress को अब नई पार्टी की तरह संगठन में बदलाव करते हुए नए शिरे से शुरुवात करनी चाहिए और पार्टी के कानून में कहाँ से और क्यों ढीलापन आ गया है इसका आत्ममंथन कर इस समस्या का हल निकालना ही पड़ेगा | गोष्ठीमंथन के चौपाल से आर्टिकल अच्छी लगे तो शेयर करें | photo courtesy pixabay , flickr dot com, wikimeida cartoon GoshtheeManthan art section
बलभद्र श्रीवास
गोष्ठीमंथन ब्लॉगर जर्नलिस्ट