कोरबा कुसमुंडा : कोरबा जिला छत्तीसगढ़ राज्य के एस.ई.सी.एल. कुसमुंडा खदान से प्रभावित ग्राम पाली पड़निया सोनपुरी रिस्दी के ग्रामीण भूमि अधिग्रहण कानून 2013 ( यथा संसोधित 2015 ) के लाभ पाने के लिए भटक रहे हैं | इन चारों गाँव के ग्रामीण दिनांक 11 जनवरी 2019 को जिलाधीश कार्यालय पहुँच कर अपने अधिकार के लिए आवेदन पत्र प्रस्तुत किये हैं | श्रीमान जिलाधीश मो कैसर अब्दुल हक के अनुपस्थिति में अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी प्रियंका ऋषि महोबिया को जिलाधीश के नाम पर ज्ञापन सौंपा |
जमीन देकर खदान की बुनियाद रखने वाले, किसान दाने दाने को मोहताज
एस.ई.सी.एल. कुसमुंडा परियोजना सन 1979 में अस्तित्व में आया था | खदान संचालन हेतु ग्राम दुरपा, जरहाजेल, बरपाली, गेवरा, दुल्लापुर,सोनपुरी, मंनगाव, खम्हरिया, बरम्पुर, भैसमाखार, जठराज बरकुटा का अधिग्रहण 1979 से 1996 के बीच किया गया था | नौकरी से वंचित इन ग्रामों के भूविस्थापित 39 साल गुजर जाने के बाद भी नौकरी की आश लगाये बैठे हैं और प्रशासन एवं प्रबंधन के चक्कर काटने को मजबूर हैं | इन ग्रामों में ऐसे भी भूविस्थापित हैं जो पहले बड़े किसान (जमींदार ) हुआ करते थे, कई एकड़ जमीन के मालिक थे | इन्हीं जमीन से इनके परिवार का भरण पोषण बेहतर तरीके से हो रहा था | लेकिन दुर्भाग्य की बात है अधिग्रहित किसानों में अधिकाँश आज भूमिहीन, और बेरोजगार हो गए हैं | क्योंकि तत्कालीन समय में मुआवजे की राशि अत्यंत कम होने, जमीन की बाजार मूल्य अधिक होने एवं बिक्रय युक्त जमीन, इनके क्षमतानुसार उपलब्ध नहीं होने के कारण खेती के लिए जमीन खरीद ही नहीं पाए और मुआवजे की राशि अन्य जीवनुपयोगी कार्यों में खर्च हो गया | राष्ट्र हित में कोयला उत्खनन हेतु जमीन देकर किसानों ने इस क्षेत्र में कोयला खदान की बुनियाद रखी , जिनके वजह से हजारों लोगों की नौकरी मिली और उनके परिवारों का कायाकल्प हो गया | वही किसान गरीबी की कतार में खड़े हैं, सरकारी लालफीताशाही के शिकार हैं और दाने दाने को मोहताज हैं | ऐसा त्याग भारत का किसान ही कर सकता है |
भूविस्थापितों के गंभीर समस्याओं को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 (RFCTLAAR Act 2013 ) लागु किया है | जिसमे विभिन्न परियोजनायों हेतु अधिग्रहित भूविस्थापितों का कल्याण हो सके | इस कानून को कुछ परियोजनायों के अधिग्रहण में लागु होने से पृथक रखा गया था | 28 अगस्त 2015 को राजपत्र में प्रकाशन कर RFCTLAAR Act 2013 कानून में संसोधन किया गया | संसोधन उपरांत (Coal Bearing Areas) “ कोल बेरिंग एरियास ” के तहत अधिग्रहित परियोजनायों में भी RFCTLAAR Act 2013 कानून को लागु किया गया |
कुसमुंडा विस्तार परियोजना 15 मिलियन टन हेतु 5 गाँव का अधिग्रहण Coal Bearing Areas के तहत किया गया था | जिसका धारा 4(1) का प्रकाशन 8 जून 2009 धारा 7(1) 26 नवम्बर 2009 और धारा 9(1) 26 मार्च 2010 किया गया था | इन ग्रामों में ग्राम पाली का अवार्ड 16 अगस्त 2016 को किया गया था | इनमें से शेष ग्रामों का अवार्ड प्रक्रियाधिन है | कोयला मंत्रालय ने अगस्त 2017 में सर्कुलर जारी कर निर्देशित किया था, कि 01 सितम्बर 2015 के बाद जिन ग्रामों का अवार्ड होना है, और अधिग्रहण होना हैं | उन ग्रामों में नया भूमि अधिग्रहण कानून 2013 यथा संसोधित 2015 लागु किया जायेगा | 1 सितम्बर 2015 के बाद विस्तार परियोजना से प्रभावित ग्राम पाली का अवार्ड 16 अगस्त 2016 को किया गया है | अन्य ग्रामों में अवार्ड प्रकियाधीन है | इसलिए इन प्रभावित ग्रामों में नया कानून 2013 स्वमेव ही प्रभावी हो चुका है | वर्तमान छत्तीसगढ़ कांग्रेस सरकार ने अपनी चुनावी घोषणा पत्र में भी नए कानून 2013 के तहत भूविस्थापितों को लाभ देने की घोषणा की है |
ज्ञात हो जिलाधीश कार्यालय कोरबा में दिनांक 26/03/2016 को तत्कालीन जिलाधीश की अध्यक्षता में पुनर्वास समिति की बैठक कर छत्तीसगढ़ राज्य की अधिसूचना मार्च 2010 के तहत टिकरा भूमि हेतु 06 लाख प्रति एकड़, असिंचित एक फसली हेतु 08 लाख प्रति एकड़, एवं सिंचित बहु फसली के लिए 10 लाख प्रति एकड़ निर्धारित किया गया था | नौकरी हेतु कोर इंडिया पालिसी 2012 के अनुसार कुल एकड़ में अधिग्रहित निजी भूमि के आधे लोंगो को घटते क्रम की सूची के अनुसार रोजगार देना तय किया गया था, अर्थात जितना एकड़ जमीन अधिग्रहित की जाएगी , उसका आधा भूविस्थापित को रकबा के घटते क्रम में रोजगार प्रदान किया जायेगा | भूमि अधिग्रहण कानून के अस्तित्व में आ जाने के बाद अन्य किसी पालिसी या नीति का प्रभाव स्वमेव ही ख़तम हो जाता है |
इन्हीं क़ानूनी पहलों को ध्यान में रखकर कुसमुंडा विस्तार परियोजना में प्रभावित गाँव पाली, पड़निया, सोनपुरी, और रिस्दी के ग्रामीणों ने कोरबा के जिलाधीश को ज्ञापन सौपकर अपनी समस्या से अवगत कराया |
ब्रजेश कुमार श्रीवास
एडिटर इन चीफ
गोष्ठीमंथन