17 वी लोकसभा का अंतिम वोट पड़ने के साथ ही चुनाव ख़त्म हो गया | पहले भी चुनाव होते थे लेकिन 2014 और 2019 के चुनाव को भारत में अत्यधिक अमर्यादित और लोवर दर्जे के चुनाव की शुरुवात कहा जा सकता है | सत्ता पक्ष और विपक्ष सभी ने मर्यादाओं का हनन किया | विकास पर बाते नहीं हुई मगर व्यक्तिगत लांछन आरोप प्रत्यारोप लगाये गए | इसमें प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी बढ़ चढ़ का हिस्सा लिया | इसके बाद सभी राजनीतिक पार्टियों ने इस परम्परा का निर्वहन किया | इस चुनाव में चुनाव आयोग की भी चुनाव होने वाली है क्योंकि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर नेताओ ने और पब्लिक ने भी प्रश्न चिन्ह लगाया है | वैसे तो नरेन्द्र मोदीजी की सरकार में प्रशासनिक तंत्र बेहद कमजोर था या किया गया था | प्रशासनिक एजेंसी इतनी लचर बेअसर कि इनका काम पोस्ट ऑफिस जैसी चिट्टी के आदान प्रदान करने से ज्यादा कुछ नहीं था | मैंने कुछ पर्सनल काम के लिए सरकारी दफ्तर को शिकायत किया था | भारत के सभी बड़े संस्थान जैसे मानव अधिकार आयोग , विजिलेंस विभाग , पी.एम्.कार्यालय सभी की स्थिति एक जैसी ( पोस्ट ऑफिस की तरह ) इनके कार्यप्रणाली इतने ख़राब और असंवेदनशील है आप मर जाओ इनको कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है | 2014 से पहले मीडिया पक्षपात कर रहा है की नहीं, पब्लिक को पता नहीं चलता था | मगर 2014 के बाद से मीडिया ने स्वयं को एक्सपोज़ कर दिया और आपने आप को इस लेबल पर ले गए कि साधारण जनता को भी मीडिया से बेरुखी होने लगी | भारत में मीडिया का काम सिर्फ राजनीतिक समाचार किसी नेता के फालतू बयानबाजी पर लाइव डिस्कसन या पेनल डिस्कसन या दूसरे शब्दों में कहूँ तो कुछ मीडिया विवादास्पद सनसनी ,धार्मिक द्वेष को बढ़ावा देने वाले विषय पर चर्चा करते रहे अगर आप उनके चैनल के शीर्षक और चर्चा को सुने होंगे तो पता चल ही गया होगा | ज्यादातर मीडिया का झुकाव सत्ता पक्ष को बेहतर दिखाने में रहा और सत्ता पक्ष के छोटी से छोटी बातों को ब्रैकिंग न्यूज़ की तरह पेश किया जाता था | सत्ता पक्ष के नेताओं के भाषण के साथ इनकी छोटी छोटी ख़बरों को भी महवपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करना , एंकर का बेहतरीन काबिलीयत माना जाता है ऐसे एंकर की मांग बढ़ गयी थी | ज्यादातर लोग टीवी के एक ही टाइप के समाचार से झुंझलाहट महसूस करते थे | मुझे ऐसा लगता था कि किसी चैनल में कोई पत्रकार नहीं बैठा बल्कि पत्रकार के रूप में नेता का सचिव बैठा है जो सत्ता पक्ष के कारनामों का बखान कर रहा है | वैसे भी भारत में प्राइवेट चैनल का उद्देश्य बदल चूका है | देश का चौथा स्तम्भ पता नहीं कहाँ है |
भारत के कुछ पब्लिक को बुनियादी समस्याओं से कोई लेना देना नहीं है | भारत अमीर और मजबूत बने इससे ऐसे पब्लिक को कोई फर्क नहीं पड़ता है | इनके लिए भारत में भूख से बड़ी है देश की सुरक्षा , और सुरक्षा का मतलब है मोदी जी | अगर भारत के लोग भूख से मर जाए कोई बात नहीं मगर सुरक्षा में कमी नहीं होनी चाहिए | राजनीति का पहला पाठ है जनता में युद्ध का भय दिखाया जाए | इससे जनता में देश प्रेम जागता है और जनता शासन से रोटी और रोजगार
नहीं मांगती बल्कि देश के लिए मरने के तैयार होती है | राजनीति का यह पाठ 21वी सदी में भी काम कर जायेगा, मालूम नहीं था , आश्चर्य है | भारत में विपक्ष हमेशा थर्ड फोरम बनाते और तोड़ते रहेंगे | मगर एक होने में इनके ईगो सामने आते है | कमजोर विपक्ष सत्ता पक्ष को निरंकुश होने से नहीं रोक सकता है | जनता के हित और राष्ट्रहित के लिए दमदार विपक्ष जरूरी है | उम्मीद है इस चुनाव में विपक्ष मजबूत होकर सामने आएगा | गोष्ठीमंथन के चौपाल से आर्टिकल अच्छी लगे तो शेयर करें | photo courtesy pixabay , unsplash dot com, website myneta.info, Website adrindia.org